[बेद और उनका साहित्य + में इतनी स्वाधीनता से नहीं सम्मिलित होती थी जितना कि भाजकल योरप की स्त्रियाँ करती है, पर फिर भी उन्हें पुरे पूरे परदे और कैद में रखना हिन्दू लोगों की चाज नहीं थी। ब्राह्मण ग्रन्थों से बहुत से ऐसे ऐसे वास्य उद्धन किये जा सकते हैं जिनसे जान पड़ेगा कि स्त्रियों की उस समय बड़ी प्रतिष्ठा थी, पर हम यहाँ केवल एक या दो ऐसे ऐग्ने वाक्य उद्धत करेंगे। इनमें से पहिला वाक्य, जिस दिन याज्ञवल्क्य घर बार छोड़कर बम में गये उस सम्या को याज्ञवल्क्य और उनकी स्त्री की प्रसिद्ध बातचीत है। (१)जब याज्ञवल्क्य दूसरी वृत्ति धारण करनेवाला था तो उसने मैत्रेयी, मैं अपने इस घर से सच सच जा रहा हूँ। इसलिये. मैं तुम मैं और कात्यायनी में सब बात ठीक कर दूं। (२) मैत्रेयी ने कहा 'मेरे स्वामी, यदि यह धन से भरी हुई सब पृथ्वी ही मेरी होती तो कहिए कि क्या मैं उससे अमर हो जाती। याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया 'नहीं, तेरा जीवन धनी लोगों के जीवन की नाई होता । पर धन से अमर हो जाने की कोई पाशा नहीं है।' (३) तब मैत्रेयी ने कहा, "मैं उस वस्तु को लेकर क्या करूं कि जिससे मै अमर सी नहीं हो सकती ! मेरे स्वामी, श्राप अमर होने के विषय में जो कुछ जानते हो सो मुझसे कहिये। (४) याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया . तू मुझे सचमुच प्यारी है, तू प्यारे वाक्य कहती है । था, यहाँ बैंठ, मैं तुझे इस बात को बताऊँगा। मैं कहता हूँ उसे सुना और तब उसने उसे यह ज्ञान दिया जो कि बारम्बार उपनिषदों में बहुत जोर देकर वर्णन किया गया है, कि सर्व व्यापी ईश्वर पति में, स्त्री में, पुत्रों में, धन में, ब्राह्मणों और क्षत्रियों में और सारे संसार में, देवों में, सब जीवों में, सारांश यह है कि सारे विश्व ही में है। , जो कुछ .
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