१२५ [ वेद और उनका साहित्य उसमे तुरन्त पूछा “मित्र तुम में ऐसा तेज है जैसे कि तुम ब्रह्म को जानते हो । तुम्हे किसने शिक्षा दी है ?" युवा शिष्य ने उत्तर दियो "मनुष्य ने नही" जो बात युवो शिष्य ने सीखी थी वह यद्यपि उम समय के मन गढंत शब्दों में छिपी हुई थी पर वह यह थी कि चारों दिशा, पृथ्वी, धोकाश, स्वर्ग और समुद्र, सूर्य, चन्द्रमा, थग्नि और जीवों की इन्द्रियों तथा मन, सारांश यह कि सारा विश्व ही ब्रह्म अर्थात ईश्वर है। उपनिषदों की ऐसी शिक्षा है और यह शिक्षा इसी प्रकार की कल्पित कथाओं में वर्णित है जैसा कि हम आगे चलकर दिखलावेंगे । जब कोई विद्वान् ब्राह्मणों के नियमों, विधानों के घरोचक और निरर्थक पृष्ठों को उलटता है तो उसे उस सत्यकाम जाबाल के कैसी कथाएँ, जोकि मानुषी भावना और करुणा और उच्चतम सुचरित की शिक्षाओं से भरी है, धीरज देती थोर खुश करती है । पर इस कथा को यहाँ पर लिखने में हमोरा तात्पर्य यह दिखलाने का है कि जिस समय ऐसी कथाएँ बनी थी उस समय तक जातिभेद के नियम इतने कड़े नहीं हो गये थे। इस कथा से हमको यह मालूम होता है कि दासी का लड़का जोकि अपने बाप को भी नहीं जानता था, केवल सञ्चाई के कारण ब्रह्मचारी हो गया, प्रकृति तथा उस समय के पण्डित लोग उसे जो कुछ सिखलो सकते थे उन सब बातो को उमने सीखा और अन्त में उस समय के सबसे बड़े धर्मशिक्षकों में हो गया। इसमें सन्देह नहीं कि उस समय की जाति प्रथाओं में बडी ही स्वतन्त्रता थी। पोछे के समय को प्रथा की नाई. उस समय रुकावटें नहीं थी कि जब ब्राह्मणों को छोडकर और सब जाति को धर्म का ज्ञान ही नहीं दिया जाता था, वह ज्ञान जो कि जाति का मानसिक भोजन और जाति के जीवन का जीव है। यज्ञोपवीत का प्रचार ऐतिहासिक काव्य काल ही से हुमा; पथ ब्राह्मण में (२, ४, २) लिखा है कि नब सब लोग प्रजापति संत-
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