[वेद और उनका साहित्य ईश्वर का ज्ञान दूं। हे वालाकि, वह जो सब वस्तुओं का कर्ता है जिनका तुमने वर्णन किया-वह सिमको सह सत्र माया है केवल उसी का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। सब वालाकि अपने हाथ में इंधन लेकर यह कहता हुधा श्राया 'क्या मैं थापके निकट शिष्य की भांति पाऊँ ? तब अजातशत्रु ने उसे उपदेश दिया। यह कथा-तथा श्वेतकेतु श्रारुणेय और प्रगहन जैगकी की कथा भी वृहदारण्यक उपनिषद् में दी गई है। इनके सिवा उपनिषदों में ऐसे धनगिनत वाक्य हैं जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि क्षत्रिय सच्चे धर्म ज्ञान के सिखानेगले थे। वैदिक काल की समाप्ति होने तक मार्यों ने बढे २ राज्य स्थापित कर लिये थे इस बात का पिछले अध्यायों को ध्यानपूर्वक पढ़ने से पता लग जायगा । गंगा और जमुना के द्वावे में प्रार्यों के बस जाने के उप. सन्त । र सौ वर्षों तक न तो इन्हें युद्ध करने पडे, न कोई विकट यात्रा करनी पडी फलन वे कृषि-शिल्प और विनिमय में लगे और कई सुगठित राज्यों की नीव डाल सके.-जो सर्वथा शान्त थोर शादर्श राज्य थे । एक राजा ने अपने राज्य की सुव्यवस्था का वर्णन इस ढंग से किया है- 'मेरे राज्य में कोई चोर, कंजूस, शराबी, अग्निहोत्र न करनेवाला, मूर्ख वा व्यभिचारी स्त्री पुरुष नहीं है । (छान्दोग्य० उ. ५।२) ऐसे शब्द कहना किसी भी राजा के लिए अति महत्वपूर्ण थे । परन्तु जब हम देखते हैं कि ये राजा लोग उच्च कोटि के अध्यात्मताव के ज्ञाता गुरु और विद्वानों में अपना समस्त समय व्यतीत करनेवाले थे-तब हमें इस विषय में सन्देह नहीं रह जाता कि उस समय की प्रना की दशा ऐसी ही होगी जैसा कि अश्वपलि कैक्य का वाक्य घोपित करता है । इस प्रकार चैदेशिक युद्धों और संघर्षों से दूर रह कर मार्यो ने हाँ ऐसे व्यवस्थित चौर सुन्दर राज्य बनाये वहीं उन्होंने एर
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