छठा अध्याय ] १३० धारण्यक ब्राह्मणों के पीछे का साहित्य है। और इन्हें ब्राह्मणों के अन्तिम अंश समझे जा सकते हैं । सायण ने लिखा है कि उन्हें इसलिए पारण्यक दाहा गया था कि वे वन में पड़े जाते थे और ब्राह्मण उन यज्ञों में प्रयोग किये जाते थे कि जिन्हें गृहस्थ किया करते थे । इन यारण्यकों का महत्त्व इसलिए है कि वे प्रसिद्ध धार्मिक विचारों के विशेष भण्डार हैं जो उपनिषद् कहलाये। ब्राह्मण ग्रन्थों के पीछे कपिल और बुद्ध के प्रौढ़ विचारों का प्रचार होने पर फिर ब्राह्मणों को थोथी-निरर्थक और बेहूदी बकवाद जीवित रहना असम्भव था। उस समय भारतवासियों के हृदयों में एक नया प्रोत्साहन हो रहा था। [विन्ध्याचल के आगे एक नई भूमि का पता लग रहा था, यह दक्षिणा पथ था। महात्मा अगत्य धार्यों को यह पथ दिखा चुके थे। उत्साह भक्ति और विवेचना से परिपूर्ण उपनिषद् लिखे जा रहे थे । जो ब्राह्मणों के प्रबल विरोधी थे । कपिल ने जो प्रकाण्ड दार्शनिक और तत्वदर्शी महासत्व था । अपने प्रगाढ़ पाण्डित्य से भारतवर्ष भर में हलचल मचा दी थी और महान् बुद्ध अपने दुःखवाद की समस्या को उच्च श्रात्मवाद के रूप में -उस ब्राह्मण धर्म और उसके पाप से ऊबी और प्यासी जनता को प्रदान करने लगे थे। फलतः ब्राह्मणों का लोप हुया । विस्तृत और अर्थ विहीन नियमों को लोगों ने ठुकरा दिया। तब फिर से सभी धर्म और समाज के नियम संक्षेप से लिखे गये । संक्षेप में लिखना-उन विस्तृत ब्राह्मणों से ऊत्रे हुए मनुष्यों के लिए एक कला बन गई । फलतः गूढ़ दार्शनिक विषयों का निर्माण हुमा । इस प्रकार ब्राह्मणों के धाडम्बरमय ग्रन्थों के विवेकमय काल ने बड़ी विजय प्राप्त की। ताल पर सुत्र
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