[ वेद और उनका साहित्य 1 के निर्मल जल धरती में पड़ने पर धृल मिल जाती है। इसलिए नासणों की लिखने की प्राली में बड़ा धन्तर उत्पज हो गया। ऐसा ही योरोप के साहित्य का इतिहास भी नो साक्षी देता है। क्यों योरोप के मध्यकाल के इतिहास और कल्पित कथाएँ उसी प्रणाली पर नहीं बनाई गयीं जिस प्रणाली में चौदहवीं शताब्दि और पन्द्रहवीं शताब्दि में ग्रन्थो का निर्माण हुना था । क्यों ा म और गिवन ने मध्य- काल की शैली का अनुसरण नहीं किया । स्काट ने ही क्यों मध्यकाल की शैली का अनुसरण नहीं किया ? इनके चर्णित विषय तो एक ही थे। यह स्पष्ट है कि महारानी एलिजाबेथ के शासन काल धौर शेक्स- पियर और बेकन के साहित्य के बाद मध्यकाल के योरोपियन साहित्य प्रणाली में लिखना भसम्भव था । स्पट था कि लोगों की बुद्धि का विकास हुअा था । वर्तमान तर्कशास्त्र उत्पन हो रहा था-वाणिज्य व्यापार शिल्प और समुद्रीय यातायात में क्रान्ति हो रही थी-यही तो योरोपीय साहित्य के सृष्टि परिवर्तन का इतिहास है। ऋग्वेद के सूक्तों में केवल पंजाब का उल्लेख है--सभी यज्ञों सामाजिक संस्कारों और यज्ञों का स्थान केवल सिन्धु तट है। या उसकी शाम्पा सरस्वती । परन्तु बाझही में याधुनिक दिल्ली के प्रासपास प्रबल कुरुत्रों का याधुनिक कन्नौज के धासपास के देश में प्रबल पांचाजों का, 'उत्तराखंड में विदेहों का, अवध में कोशलों का नथा आधुनिक बनारस के आसपास काशिनों का उल्लेख मिलता है। इन्होंने बड़े-बड़े थाइम्बरों से यज्ञों को किया और उनका प्रचार किया। इनमें अजातशत्रु, जनक, जनमेजय, जैसे प्रतापी राजा हुये । ब्राह्मणों में हम इन्हीं की सभ्यता और इन्ही का उल्लेख पाते हैं। पंजाब मानो भूल गया था। दक्षिण अभी ज्ञात न था। या उसे लोग जंगली मनुष्यों तथा पशुधों की भूमि समझने थे। परन्तु अन्त में मूत्र ग्रन्थों में तो हमें दक्षिण के बड़े बड़े राज्यों का जिक्र मिलता है। 1
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