पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१३६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[वेद और उनका साहित्य यहाँ एक बात और भी स्मरण रखने की है कि महिदास ऐतरेय की अवस्था 'षोडशं वर्षशत ' एकसो सोलह वर्ष योन कि सोलहसौ वर्ष, क्योंकि शङ्कर अादि ने भी इसका यही अर्थ लिया है और यही अर्थ संभव भी प्रतीत होता है, इसके अतिरिक्त छान्दोग्य के इस प्रकरण में पुरुष को यज्ञस्त्य मान कर उसकी सवनों से तुलना की है। तीनों सवनों के कुल वर्ष भी २४+४४४४८ = १६ ही होते हैं, अतः महिदास ऐत- रेय की थायु ११६ वर्ष ही थी। (१.) सामविधान माह्मण ३६३ में एक वंश कहा है, यह निम्न लिखित प्रकार से है- (.)प्रजापति (२)वृहस्पति 1 1 (३) नारद 1 (४) विश्वकमेन (५) ग्यास पाराशर्य 1 (६) जैमिनि (७)पौपिण्ड्य (८)पाराशर्याय