[ वैद और उनका साहित्य श्रयैतत्या एव अरय विद्याय भेजोरसं प्राकृहत् , नेपामेव वेदानां भिष. ज्या भूरियां प्रावृष्टत् कोपीतकिनार १० ...
- स इमानि त्रीणि ज्योति । प्यभितताप, तेभ्यस्तभ्यस्त्रयो चंदा
प्रायन्ताग्ने च वेदो वायोयुर्वेदः सूर्यात् सामवेद ॥ स इमास्त्रीन् चेदानभितताप नेचरतोग्यस्त्रीणि शुक्राण्यायत भूरि-य-. ग्वेदात् ॥४॥ शतपथ ११) स एतास्तिस्त्र देवता अभ्यतपत्, तासां सत्यमानानो रसान प्रादत, अग्नेश चो वायोर्थजू पि सामान्यादिन्यात ॥२॥ स तांत्री विद्यामभ्यतपत, तस्यास्तप्यमानायर रमान प्रावृहत् मूरि- रम्य ॥३॥ छान्दोग्य उ० ४१७ अतएव इनपे भी यही सिद्ध होता है कि प्राय अन्य संहिताश्री के साध साथ प्रगट नही हुए। (५) शतपय ब्राह्मण १४।६।२८१६ मैं स्पष्ट रूप से वेदों से उप- निषदों को पृथक माना है-
- ऋग्वेदो यजुर्वेदः मामवेदोऽधर्वाहिरस इतिहासः पुराण' विद्या
उपनिषदः शोकः सूत्रापयनुम्पाख्यानानि ग्यास्यानानि वा समाद मजायन्ते" लगभग ऐसा ही पाट शतपथ ९४११1१० में भी पाता है। यहाँ सूत्र के आदि के समान उपनिषदों को भी वेदों से पृथक माना है, भव अब बाहाण ग्रन्थ स्वयं ही मामलों के भाग उपनिषद् को वेद नहीं मानते तो ब्राह्मण स्वयं किस प्रकार के हो सकते हैं। पाणिनीय सूत्र शौनकादिम्यश्वन्दसि २१३१३६ से हम जानते है कि शोनक किसी शाखा वा ब्राह्मण का प्रबंधन कत्ता है, सम्भवतः यह शाखा बाथर्वणी की थी, प्राधलापन . -