41 हजारों वर्ष तक ये रोमांचकारी कार्य होते रहे-अन्त में जैन धौर इधर्म का उदय हुथा। ये दोनों ही धर्म क्षत्रियों की ब्राह्मण तथा की हिंसामयी .यज्ञों के विरुद्ध क्रान्ति के परिणाम थे। इन दोनों गों ने वैदिक धर्म पर इतने जोर का आघात किया कि बाह्मणों की क्ति छिन्न-भिन्न हो गई । उन्होंने वेदांगों का निर्माण किया। शिक्षा और प बनाये । बौद्धों की देखादेखी कल्प-साहित्य प्रायः सूत्रों में ही बनाया। सके चार विभाग किये गये, श्रौत सूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुत्व- त्र । एक-एक प्रकार के सूत्रों को अनेक-अनेक प्राचायो' ने लिखा जनमें से बहुत से ग्रन्थ अद्यावधि उपलब्ध हैं। श्रौतसत्रों में यज्ञों के विधान की विधियों का वर्णन किया गया, वसूत्रों में गर्भादानादि १८ गृह्य संस्कारों का वर्णन किया गया, धर्म- त्रों में दैनिक जीवन व्यतीत करने, उत्तम लोक की प्राप्ति और राय पाप के नियमों का वर्णन किया गया, तया शुल्बसूत्रों में यज्ञ- गला श्रादि बनाने की विधियों का वर्णन किया गया। तीसरे वेदांग व्याकरण में लौकिक और वैदिक संस्कृत भाषामों के नेयमों का वर्णन, चौथे वेदांग में निघण्टु में वैदिक कोप का वर्णन , (निरुक्त इसी निघण्टु की टीका है) पांचवें वेदांग छन्द में लौकिक और वैदिक छन्दों का वर्णन तथा छटें वेदांग ज्योतिष में यज्ञों के समय के योग्य तारा, नक्षत्र श्रादि का वर्णन है। (३) गो पथ ब्राह्मण पूर्वभाग १५ से भी यही सिद्ध होता है। यान् मन्त्रानपथ्यत् स श्राथर्वणो वेदोऽभवत् (४) ब्राह्मण ग्रन्थों में जहाँ वेदों की उत्पत्ति लिखी है वहाँ बाह्मणों की उत्पत्ति का नाम भी नहीं है, जिससे प्रगट होता है कि ब्राह्मण वेद नहीं है। उदाहरणार्थ- स एतानि त्रीणि ज्योतींप्यभ्यतप्यत सोऽग्नेरेव!ऽस्नत वायोर्यजूप्यादित्यात् सामानि, स एतांत्रयीं विद्यामभ्यतप्यत ।... -
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