घटा अध्याय] से मनु को पाने वाले जल-प्रलय से रक्षा करने का वचन दिया । महला के उपदेश के अनुसार एक जहाज बनवाकर मनु,जल-प्रलय के समय उसमें बैठ गये और वही मछली उस जहाज को उत्तरी पर्वत पर ले गई, जिसके सींग से उसने अपना जहाज बाँध दिया था। फिर अपनी पुत्री ने मनुष्य जाति की उत्पत्ति की थी। के द्वारा मनु शतपथ ब्राह्मण में इस प्रकार के बहुत से अाख्यान और कथानक नाये हैं। इसकी रचना से पता लगता है कि यह ब्राह्मण के पिले भाग में बना है। इसकी भाषा अन्य ब्राह्मण ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक उन्नत, सुविधाजनक और स्पष्ट है । यज्ञों का वर्णन भी इसका सर्वथा विशेष पद्धति पर है। अध्यात्म विषय में भी इसमें एकत्रवाद पर अधिक जोर दिया गया है, जब कि इसका उपनिषद् भी वैदिक दर्शन शास्त्रों का उत्कृष्ट ग्रन्थ माना गया है। अथर्ववेद का सम्बन्ध गोपथ ब्राह्मण से है। पर उसका उस संहिता से कोई प्रकट संबन्ध प्रतीत नहीं होता । यह ब्राह्मण बिलकुल अर्वा- चौन प्रतीत होता है । लेख भी मिश्रित हैं । इस ब्राह्मण के दो भाग हैं। पूर्वाद्ध में पाँच अध्याय है और उत्तरार्द्ध में छः अध्याय हैं । दो भाग बहुत बाद की रचनाएँ हैं, क्योंकि वह वैतान पधात् बने हैं और उनमें कोई अथर्वण श्राख्यायिका भी नहीं है । पूर्वार्ध में उतना अंश ही मौलिक है, जिसका किसी यन या संस्कार से संबन्ध नहीं है, अन्यथा बाकी सब शतपथ ब्राह्मण के ग्यारहवें और बारहवें कारड से और कुछ अंश ऐतरेय ब्राह्मण से लिये गये हैं । इस ब्राह्मण का मुख्य उद्देश्य अथर्व वेद और चौथे पुरोहित का महत्व बढ़ाना है 1 शिव के वर्णन, अथर्ववेद के बीसों काण्डों के वर्णन और परिष्कृत व्याकरण के नियमों के कारण इसको बहुत बाद की रचना समझा जाता है। उत्तरार्द्ध विल्कुल साह्मण के दंग का है । उसमें वैतान श्रौतसूत्र नेग पनों का वर्णन
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