घा अध्याय इसमें कुरु राम जनमेजय और पांचाल पारुणि का पटतः उल्लेख किया गया है। इससे यह भो प्रतीत होता है ब्राह्मण मत उस समय मध्यदश के पूर्वीय देशों में, राजधानी अयोध्या सहित कौशल देश में और राज, धानी मिथिला सहित विदेह दश मे फैल गया था। शतपय बाह्मण के वार के कांडों में यहाँ होने वाले बड़े-बड़े शास्त्राधी का उल्लेख किया गया है। वीर भारुणि के शिष्य याज्ञवल्क्य को इस ब्राह्मण में अध्यात्म शास्त्र पर (अध्याय 2 से नौ तक छोड़ कर) बड़ा भारी प्रमाण माना गया है। इस ब्राह्मण के कई एक अंशों से इस बात को संभावना प्रगट होता है कि याज्ञवल्क्य विदेह का निवासी था। याज्ञवल्क्य को इस प्रकार प्रधानता दी जाने से प्रगट होता है शतपथ ब्राह्मण की रचना पूर्वीय देशों में हुई थी। शतपथ ब्राह्मण में थेड़ा संकेत उस समय का भी किया गया है, जब विदेह में ब्राह्मण धर्म नहीं पाया था । प्रथम कांड की एक पाख्या- यिका से प्रार्य लोगों के पूर्वोय देशों में तीन बार जाने का पता चलता है। विदेहों के पूर्व की ओर बढ़ने का कुछ अस्पष्ट सा हाल नीचे उद्धत किये हुए शतपथ ब्राह्मण के वाक्यों में मिलता है- (१०) माधव विदेष के मुँह में अग्नि वैस्वानर थी। उसके कुल का पुरोहित ऋपि गोतम राहू गए या। लब यह उससे बोलता था तो माधव इस भय से कोई उत्तर नहीं देता था कि कहीं अग्नि उसके मुँह से गिर न पड़े। (१३) फिर भी उसने उत्तर नहीं दिया । तब पुरोहित ने कहा, हे घृतस्न हम तेरा अावाहन करते हैं । (ऋग्वेद म०५ सू० २६ ऋ० ३ ) उसका इतना कहना था कि घृत का नाम सुनते ही अग्नि वैश्वानर राना के मुंह से निकल पड़ी । वह उसे रोक न सका। वह उसके मुंह से निकल कर इस भूमि पर गिर पड़ी।
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