छठा अध्याय ] ११३ वृषण युजद के गद्य भाग हो वास्तव में का और मैत्रायणीय शाखायों के ब्राह्मण हैं, तत्तिरीय शाखा का तैत्तिरीय ब्राह्मण अत्यन्त प्राचीन है, इसके तीन खंड है, इसमें कुछ उन यज्ञों का वर्णन है जो संहिताओं में भी छूट गये हैं। तैत्तिरीय ब्राह्मण के साथ साथ तैत्तिरीय पारण्यक भी है। इसके दस खण्डों में से सातवें से नौवें तक में तैत्तिरीय उपनिषद् और दसः खंड में महानारायण उपनिषद् अथवा याज्ञिकी उपनिषद् है, इन चार खंडों के अतिरिक्त इस ब्राह्मण या आरण्यक का शेष भाग विषय में संहिता से मिलता जुलता है। ब्राह्मण के तीसरे भाग के अन्त के तीन खंड और श्रारण्यक के प्रथम दो खंड वास्तव में कठ शखा के थे, यद्यपि उन्होंने इनको सुरक्षित नहीं रखा । तैत्तिरीय ब्राह्मण ३ । २ में नचिकेता का उपाख्यान है, जिसके आधार पर काठक या कठोपनिपद की रचना की गई है। यद्यपि मैत्रायणी संहिता का कोई स्वतन्त्र ब्राह्मण नहीं है तथापि उसका चौथा भाग बिलकुल नामण ढंग का है। इसी में मैत्रायल अथवा मैत्रायणीय का मैत्री उपनिपद् भी है। शुक्र यजुर्वेद का सब से प्रसिद्ध और महत्वशाली ब्राह्मण शतपथ ब्राह्मण है । सौ अध्यायों में लिखा जाने के कारण से हो इसका नाम शतपथ पड़ा है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में ऋग्वद के परचात् इसी का भारो महत्व है। इसकी दो शाखार मिलती हैं। जिनमें से माध्यन्दिनी शाखा वाले को प्रोफेसर देवर ने और कारख शाखा वाले को प्रोफेसर एगलिंग ने सम्पादित किया है। माध्यन्दिनी शाखा के १०० अध्यायों को चौदह और काण्व शाखा के १०० अध्यायों को सत्रह कारों में विभक्त किया गया है। माध्यन्दिनी शाखा के पहिले नौ काण्ड वास्तव में
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