[वेद और उनका साहित्य सामवेद का दूसरो हाह्मण ताण्डयमहा ब्राह्मण है, इसके पञ्चविंश याह्मण योर प्रौढ ग्राह्मण नाम भी है । इसमें मुख्य रूप से सोमयाग का वर्णन है। इसमें छोटे से छोटे सोमयाग में लेकर सौ दिन अथवा कई वर्षों तक होने वाले सोमयागों का वर्णन है। बहुत से पारण्यको के अतिरिक्त इसमें सरस्वती और पद्धती के तटों पर होने वाले यज्ञों का बहुत सूक्ष्म वणन किया गया है। यद्यपि इसको कुरुक्षेत्र विदित है तथापि अन्य भौगोलिक विषयों से इसकी उत्पत्ति पूर्व की ओर की समझी जाती है । इसके यज्ञों में से बान्य-स्नोम विशेष महत्वशाली है क्योंकि इसको करने से अपराह्मण धार्य ब्राह्मणग्व में प्रवेश कर सकते हैं। पडर्विश ब्राह्मण नामक स्वतन्न ब्राह्मण है किन्तु वास्तव में ताण्डय महामाहाण में ही एक चौर अध्याय लगाकर इसको बना दिया गया है। इसके अन्तिम अध्याय का नाम थदभुत ब्राह्मण है। इसमें भिन्न मिल प्रकार के विघ्नो को रोकने के विचित्र उपाय है। सामवेद की ताण्ड्य शाखा का दूसरा ब्राह्मण छान्दोग्य माझण है, इसमे पुत्रजन्म, विवाह अथवा देवताओं की प्रार्थना धादि की रीतियाँ है। प्रथम दो प्रपाठकों में इन विषयों को देकर शेष साठ प्रपाठकों में छान्दोग्य उपनिषद है। इसके अतिरिक्त अन्य प्राह्मण इतने छोटे हैं कि उनको ब्राह्मण कहना ही नहीं चाहिए-- सामविधान ब्राह्मण इसमे सब प्रकार के मंत्री से कार्य लेने के उपाय बतलाए गये है। देवताध्याय या दैवत वाहाण में मामवेद के भिन्न भिन्न प्रकार के मंत्रों के देवताओं का वर्णन है। वंश बाहाण—इसमें मामवेद के अध्यापको की वंशावली है। संहितोपनिपद्-इसमें ऐतरेय श्रारण्यक के तीसरे भाग के समान वेदों के पाठ करने का ढंग बतलाया गया है।
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