११० [वेद और उनमा साहित्य है। यद्यपि - बाह्मण थारम्भ से अन्त तक यज्ञ के वर्णन से भरा टुन्ना प्रसंग वश इसमें बीच बीच में कथानक, ऐतिद्य और कुछ वेदमंत्रों की व्याख्या भी भाई है, ऋग्वेद के दूसरे माह्मण कौषीतकि अथवा शाँखायन में तीस य. ध्याय हैं। इसके प्रथम छः अध्यायों में भोजन संबन्धी यज्ञों का वर्णन है, जिसमें अग्न्याधान, अग्निहोत्र, द्वितीयाचंद्र याग, (दर्श याग) पौर्णमास याग, और चातुर्मास्य याग का वर्णन किया गया है। शेष अध्यायों में ७ से थन्त के ३० वें अध्याय तक ऐतरेय ब्राह्मण के वर्णन से मिलता जुलता सोमयाग का वर्णन है । यद्यपि कौपीतकि ब्राह्मण ऐत- रेय की प्रथम पाँच पन्चिकायों की थपेक्षा नवीन है तथापि यह ग्रन्थ केवल एक ही लेखक की रचना प्रतीत होता है। ऐतरेय ब्राह्मण इतरा के पुन महिदास ऐनरेय का बनाया हुया कहा जाता है। कौषीतक में कौषीतक ऋषि का विशेष श्रादर प्रकट किया गया है और उनके मत का समर्थन किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन दोनों के श्राचायो' के दो भिन्न भिन्न सम्प्रदाय रहे होगे जो अपनी अपनी पद्धतियों से काम लेते होंगे। इन ब्राह्मणों में भौगोलिक विषय पर बहुत कम प्रकाश डाला गया है । भारतीय वंशों के वर्णन करने के ढा से यह पता अच्छी तरह लग जाता है कि ऐनरेय ब्राह्मण की रचना कुरु-पंचाल देशों में हुई होगी जिनमें वैदिक यज्ञों ने बड़ी भारी उपति की थी और तभी संभवतः ऋग्वेद के मंत्र भी संहिता रूप में एकत्रित किये गये होंगे। कौपीतकी माह्मण से पता चलता है कि उत्तरी भाषा में भाषा का अध्ययन विशेषरूप से किया जाता था और वहाँ से पाये हुए विद्यार्थियों को भाषा विषयक ज्ञान में प्रमाणिक समझा जाता था। हम पीछे कह पाये हैं कि ब्राह्मणों में थास्यान भी हैं, जिनमें
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