पांचवा अध्याय ] १०५ . था जैसा कि शतपथ से प्रकट है, वहाँ वह इन विधियों पर विश्वास नहीं रखता था। वह उस गूढ़ ब्रह्मज्ञान का ज्ञाता था नो इन पुरोहितों को मालूम न था। और बड़े बड़े पुरोहित उसकी शरण में इसीके लिए आते थे। वह सब को खिलाता था पर असल भेद न बताता था। उस समय अवश्य क्षत्रियगण ब्राह्मणों के इस कर्मकाण्ड के दर्प से अधीर हो गये थे। वे सोचने लगे थे कि इन क्रिया संस्कारों और विधियों में कुछ नहीं है। वे इन ब्राह्मणों के क्रिया संस्कारों को करते तो अवश्य थे-परन्तु उन्होंने अधिक पुष्ट विचार संग्रह किये थे। उन्होंने भात्मा के उद्देश्य थौर ईश्वर के विषय में खोल की थी जहाँ आकर ब्राह्मणों ने क्षत्रियों के सन्मुख हार मानी थी। यह विदेह राजा उपनिषदों के विचारों को उत्पन्न करने के कारण रानाओं और विद्वानों में अत्यधिक सम्मानित हो गया था। उपनिषदों में ऐसे बहुत से प्रमाण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि क्षत्रिय ही सच्चे धर्म के शिक्षक थे। ये प्रमाण हमने उपनिषद के अध्यायों में संग्रहीत किये हैं । वह ब्रह्मज्ञान जो मसीह से २००० वर्प प्रथम था पहिले किसी ब्राह्मण ने नहीं प्राप्त किया था, वह इस सृष्टि में क्षत्रियों ही को प्राप्त था ।
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