वटा अध्याय] इनके सिवा अष्टाध्यायी में पाणिनि भी ऐसा ही बताते हैं। यथा- ४- १-~दृष्टंसाम ४ । २। ७ २-तेन प्रोक्तम् । ।३।१०१ ३-पुराण प्रोक्त पु ब्राह्मण कल्पेयु, ४ । ३ १ १०५ ४-उपज्ञाने ४ । ३ । ११५ ५कृते ग्रन्थे ४।३।११६ अर्थात- -मन्व दृष्ट हैं। २-शेप प्रोक्त हैं। ३ -कल्प और ब्राह्मण प्रोक्त हैं । वेद स्फूर्ति से प्रकट हुए हैं। ५-साधारण अन्य रचे गये हैं । मीमांसा सून (१२ । ३ । १७) में भी ब्राह्मण ग्रन्थों को संहिता से पृथक माना गया है । सुनिए- "मन्त्रोपदेशो वा न भापिकस्य प्रायोपपत्तेर्भाषिक श्रुतिः । अर्थात भाषिक श्रुति नहीं हो सकते । इसी के भाष्य पर शवर स्वामी लिखते हैं--- "भापा स्वरो ब्राह्मणे प्रवृत्तः" अर्थात्--ब्राह्मणों में भाषा स्वर का प्रयोग किया गया है । उपर्युक्त प्रमाणों के सिवा, महत्व पूर्ण बात एक यह है कि किसी विद्वान् ने बामण ग्रन्थों के ऋषि श्रादि की थनुक्रमणि नहीं सुनी । संहिताओं की ऋषि-अनुक्रमणि होने पर भी शाखा नाम से व्यवहृत होने वाली आह्मण भाग संयुक्त-संहिताओं को अनुक्रमणिकाओं में भी ब्राह्मण भागों
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