[वेद और उनका साहित्य नहीं । गोद लेने को पद्धति अधिक पसन्द न थी। ऐसे पुत्र उत्पन करने की लालसा खूब थी जो अन्न उत्पन्न करे और शत्रुओं का नाश करे। मृत्यु के बाद परलोक जाने में विश्वास था। मृतक का अग्नि संस्कार कराया जाना था। मृतक को भस्मो पर मिट्टी के दूहे उठाये जाते थे। विधवाएँ दूसरे पतियो से सम्बन्ध करती थी। वे वैधव्य का दुःख सहन करें यह वैदिक ऋपि नहीं चाहते थे। घग्वेद के देवतायों का वर्णन हमने पीछे किया है, उससे पता चलेगा कि उस काल के ऋषि गण किस प्रकार प्रकृति की शक्तियों का अध्ययन कर रहे थे। ऋषियों को वैदिक सूक्तों के जानने के कारण सम्मान पद मिलता था । राजा उन्हें पुरस्कार देने थे। खास बास कुछ परिवार बहुत प्रसिद्ध हो गये थे जिनमें विश्वामित्र और वशिष्ट के कुल यधिक प्रसिद्ध थे। परन्तु धर्माचार्य और योद्धा एक ही होते थे-यह बात बहुत स्पट है। परन्तु न वे ब्राह्मण थे और न क्षत्रिय यह बात पान देकर समझ बूकने के योग्य है। ब्राह्मण तथा उपनिपत्-काल का सामाजिक जीवन इस काल का प्रारम्भ ईसा से २ हजार वर्ष पूर्व के अनुमान स्याल किया जा सकता है। यह वह काल था जब धार्य मतलज को पार करके भागे बढ़ पाये थे और उनने गंगाजमुना के किनारे-किनारे काशी और उत्तर विहार में बड़े बड़े राज्य स्थापित किये थे। माह्मणों, उपनिषदों और भारण्यकों में गंगा की घाटी में रहने वाले इन उमत यार्यों के कुर, पांचाल, कोशल और विदेह जातियों, उनके प्रबल राज्यों तथा सभ्यता का साभास मिलता है।
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