पांचवा अध्याय उनका निष्कंटक अधिकार था । पाँच नदियों के निकट बसने वाले पाँच समूह या प्रजातन्त्र थे, जो पंचजनः के नाम से प्रसिद्ध हुए। . पि लोग सदाचारी गृहस्थों की तरह स्त्री, पुत्र धनधान्य के साथ रहते थे । खेती करते, युद्ध भी करते और होम करते थे । स्त्रियाँ परदा नहीं करती थीं । ऋषियों की कोई जाति या वर्ण न था-उनके विवाह सम्बन्ध साधारण मनुष्यों के साथ होते थे । 'वर्ण' शब्द श्रार्य और अनार्यों में भेद करता था-अायों की भिन्न भिन्न जातियों में वह कहीं भी भेद नहीं करता था। एक परिवार के भिन्न भिन्न लोग अलग अलग कार्य करते थे । प्रत्येक कुटुम्ब का पिता स्वयं पुरोहित होता था । वेद में मूर्ति पूजा या मूर्ति निर्माण का कहीं भी उल्लेख नहीं। वे लोग मूर्ति की पूजा नहीं करते थे । न वे कोई मन्दिर श्रादि बनाते थे । प्रत्येक परिवार में अग्नि सुरक्षित होती थी और वे वेद मन्त्र गागा कर उसमें नित्य नया दधि तथा कुछ घृत डाल दिया करते थे । स्त्री पुरुषों के समान अधिकार थे। वे यज्ञ में समान भाग लेती थीं । कुछ स्त्रियां स्वयं ऋपि पद प्राप्त कर चुकी थीं और विदुषी थीं । बहुत स्त्रियाँ होम करती और ऋचाएं पढ़ती थीं । कुछ स्त्रियाँ श्राजन्म कुमारी रहती थीं । विवा- हित रहना अनिवार्य न था । ये कुमारियाँ पिता की सम्पत्ति में से कुछ पाती थीं । पत्नियां चतुर और परिश्रमी होती थीं। वे घर के सभी कार्य प्रातःकाल बहुत तड़के उठकर करना प्रारंभ कर देती थीं । कुछ व्यभि- चारिणी स्त्रियाँ भी थीं । जुया खेलने का प्रचार था पर वह निन्ध माना जाता था । विवाह की प्रतिज्ञाएँ उच्च कोटि की होती थीं। बड़े बड़े धनपति और राजा अनेक पत्नियाँ रखतेथे । स्त्रियों की सोतों का उल्लेख मिलता है । परन्तु इस कुरीति का उल्लेख अंतिम सूक्तों में है। किसी के यदि पुत्र नहीं होता था तो वह अपनी पुत्री के पुत्र को गोद लेता था। परन्तु पुत्र के रहते पुन ही समस्त सम्पत्ति का अधिकारी होता था-पुत्री
पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१०२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।