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मजदूर


मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी है 'पूस की रात' जिसमे किसान
मजदूर होना स्वीकार कर लेता है।
     मजदूर और नौकरी पेशा यह कौम 'पुस की रात' के 'हल्कू'
हैं। आप नजर दौड़ाएं कि मजदूर आंदोलन कोई लड़ा गया हो या
असंगठित नौकरी पेशा लोगों का कोई आंदोलन आपको याद आता हो।
40 प्रतिशत यह आबादी पूस की रात गुजारने की जुगत में लगी है।
   एक कविता इसी संदर्भ में।

मजदूर

किसी मजदूर ने नहीं पढ़ी होगी 'पूस की रात'
सबने तय किया मगर
कि वे किसानी नहीं करेंगे
किसानी करेंगे तो भी मजदूरी करेंगे
खेती नहीं संभालेंगे

मजदूर को राम पर भरोसा नहीं था
कि तय समय बरसेगा
कि बरसेगा भी तब
तबाह करेगा या बचाएगा

मजदूर को महाजन पर भरोसा नहीं था
कि बची रहने देगा आमदन
या ब्याज बट्टे में शून्य कर देगा सब

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 98