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सब शब्दों में अजीब सी विरक्ति भरने लगी थी

हम आपको
झुक कर सलाम करते हैं दोस्त
तुमने
हमारे जिस्म की भाषा से शब्द मिला दिए
तुमने कील गड़ी राहों में फूल उगा दिए
जिन्होंने डंडे बरसाए उन्हें कौर खिलाया
अहिंसा का कितना व्यापक रूप दिखाया


हम तुम्हें झुक कर सलाम करते हैं किसान
तुमने बच्चों के आगे रोज शर्मसार होती हम अवाम को
बडी शर्म से उबार लिया।

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 88