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हम तुम्हें झुक कर सलाम करते हैं।


हम जब
बच्चों को बताते थे
कि हम एक जनतंत्र के नागरिक हैं
तो हमारी जुबान थरथराती थी
हमारी आवाज में विश्वास नहीं होता था
बच्चे समझ जाते थे
कि लोकतंत्र का मतलब है थरथराना

वे पुस्तक की भाषा और जिस्म की भाषा में अंतर कर लेते थे उसी वक्त

हम जब पढ़ाते थे बच्चों को
कि अहिंसा एक बड़ी शक्ति है
बड़े आंदोलन लड़े और जीते गए हैं अहिंसा से
तो खुद की जुबान पर हिंसा आने लगती थी
अहिंसा से विश्वास गिराते हम
न जाने कब
घर में ही करने लगे थे हिंसा

हम जब बच्चों को बताते थे
देश की सरकार जनता के लिए होती है
जनता से होती है
तो खुद के जनता होने पर संदेह होने लगता था

आवाज, लोकतंत्र, आंदोलन, हक, इंकलाब
सब किताबी शब्द लगने लगे थे

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 87