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स्टेचू को कंक्रीट में से
चीत्कारना चाहता है उन्मुक्त
बताना चाहता है खेल का सत्य
स्टैचू में मगर सब चीज बनायी ज्ञाती है
एक जुबान नहीं बनाई ज्ञाती
कि स्टेचू में फसा महापुरुष ही कहीं
खोल न दे पूरे खेल की पोल
स्टेच्यू बच्चों का खेल नहीं
स्टेच्यू जनता से खेलने का खेल है दरअसतल
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 84