पृष्ठ:वीरेंदर भाटिया चयनित कविताएँ.pdf/७७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
 


गुरुबाग देखने
कि
कावा से लौटते
काशी में रुकते
कैसे बाबा नानक ने
एक पंगत में बैठा दिए
सवर्ण-दलित/अमीर-गरीब

गंगा को गहराई तलक निहारते
कितनी गहरी बात बताई
कि गंगास्नान पाप मुक्ति की चतुराई है चतुरदास

मुझे वनारस उस गंगा को देखने जाना था
जिसमे डुबकी लगा लेने भर से पाप मुक्ति की आश्वस्ति मिल जाती है

वनारस जाना था मुझे
पंडे-पुजारी देखने
आश्रम-वृद्धवसेरा आलय-देवालय
मोक्ष्य-स्थल, विसर्जन-तल, अर्जित-बल
सन देखना था
रहे एतिहासिक-मिथिहासिक नजर से भी
देखना था बनारस
वनारस पर लिखे शोध पढ़ने थे
ग्रन्थ देखने थे
मुझे देखना था
कि मुगल राज में कैसे वाची रही काशी की शानो शौकत
मुगलों ने बचाई काशी
या कि शिव ने अवतार लिए अनाम

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 77