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मुझे बनारस नहीं जाना


सोचता था
बनारस जाऊंगा कभी
कबीर से मिलने
पढूंगा समझूंगा जानूंगा
कि जिस मोक्ष की चाह लिये
प्राण त्यागने आते हैं यहां श्रद्धालु
वहीं के कबीर ने
वहां प्राण त्यागने से इन्कार क्‍यों किया
क्या उन्हें नहीं चाहिए था मोक्ष
नहीं चाहिए थी मुक्ति?
क्यों खंडन किया उन्होंने मुक्ति गाथा का?

लोक-श्लोक-दिव्य लोग बताते हैं
कि काशी मरे तो राजा बने, स्वर्ग मिले
मगहर मरे तो गधा बने, नरक मिले
कबीर काशी बसे उम्र भर और मगहर चले गए अपने अर

मोक्ष की फिसलन पर फिसलते लोगों के सामने
अपनी समझ पर खड़ा अकेला कबीर
कैसा था
मुझे देखना था

मैं सोचता था
बनारस जाऊंगा किसी रोज

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 76