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जनता के दुख टटोलना है
धर्म की आड़ में वोट बटोरना नहीं
दिल्ली आए लोग बेहतर जानते थे
कि राजा के मुंह को खून लगा हे
और कातर निगाहों से देखती जनता
सच मे निरीह जानवर है कोई
दिल्ली आए लोग जानते थे
खून लगे मुंह से जिंदा धर्म निकाल लेना
दूभर था
असम्भव नहीं था।
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 75