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गण दिल्‍ली आ रहा है


वे खेत से आ रहे हैं
वे गांवों से आ रहे हैं
वे ट्रेक्टर में भर कर आ रहे हैं
वे ट्रालियों में लद कर आ रहे हैं

हर बरस दूर से देखते थे जो
गणतंत्र पर्व
और अनुपम झांकियां

झांकियां के पीछे छिपा भारत हैं वे
जो दिल्‍ली आ रहे हैं

घोषणा की है उन्होंने
वे झांकि के पीछे नहीं छिपेंगे अब
खुद झांकी बनेंगे
खुद के हालात की झांकी देंगे

आयुध और सैन्य प्रदर्शन से सीना चौड़ा करते राजा को
मुल्क की असल झांकी दिखाएंगे

वे खेत लेकर दिल्‍ली आ रहे है
वे गांव लेकर दिल्‍ली आ रहे है
वे हुंकार लेकर दिल्ली आ रहे हैं
वे अलाव लेकर दिल्ली आ रहे है
घोषणा की है उन्होंने

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 72