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बोलना मत
कोई देखे
खा जाने वाली नजर से
देखने दो
वितृष्णा भर दे बेशक उसका देखना
भरने देना
बोलना मत
कोई छू जाए राह चलते
ट्रेन चढ़ते
बस में हिलते-डुलते
सिमट जाना
हिकारत भर लेना छुअन की भीतर
घुट जाना
बोलना मत
कोई पकड़ ले
मसल दे
चूम ले
दबा दे
छुड़ा कर खुद को दूर हो जाना
अनियंत्रित सांस को सहज करना
घृणा भर लेना भीतर तक बेशक
बोलना मत
जो भर लिया है भीतर
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 68