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रक्त रंजक, मृत्युपोषक इस व्यवस्था में
जितने दिन जी लिए
शुक्र मनाओ

मुआवजा तय हे हमारे मरने का
तय बस यह नहीं है
कि आज निकलो घर से
तो लोटोगे या नहीं

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 67