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झूठ के पांव
झूठ के पांव नहीं होते
एक सुना हुआ सच हे
सच नहीं हे मगर यह बात
झूठ के पांव भी होते हैं
झूठ के सर भी होते हैं,
झूठ के दस सर होते है
सौ पांव होते हैं
झूठ सच से तेज सोचता है
तेज भागता है
सत्य मगर यह है
कि मरता वह अपने सरों में उलझकर है
गिरता वह तब है
जब आधे पांव उसे पीछे दौडाना चाहते हैं
और आधे आगे
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 63