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और वही घसीट रही हो बेतरह
तो रस्सी ही छूट ना जाये
इसी डर में घिसटते रहोगे
मृत्यु के द्वार तक

कहो
कि मरने के लिए पैदा नहीं हुए हो
जीना चाहते हो
मरने तक

तो आओ
घिसटने से इनकार करें
सर्वप्रथम

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 62