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धर्म

मेरे भीतर
गहरी जिज्ञासा रही बहुत बरस
कि पूछूँ
धर्मराज तो युधिष्ठर थे
वही थे धर्म मिमांसु
धर्म विवेचक
और धर्म की गहराई समझने वाले सबसे उपयुक्त पात्र
गीता का ज्ञान फिर अर्जुन को क्‍यों
जिज्ञासा दम तोड़ गयी एक दिन स्वत:
जीवन की पुस्तक ने पढ़ाया जब
कि
धर्म को जब-जब कंधे की जरुरत होती है
तब-तब वह
शास्त्र निपुण नहीं
शस्त्र निपुण के कंधे तलाशता है

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 59