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चेतन और अचेतन के बीच का फर्क
कि हादसे भी उसी चेतना से देखे जाते है
जिस चेतना से देखी जाती है विद्रूपता

अचेतन समाज नहीं जानता कि
चेतन होना भय फैलाना नहीं है
भयों से मुक्त होना है
स्वयं से ईमानदार हो कर
भीतर तक संवाद में उतरना है

अचेतन समाज दरअसल नहीं जानता
की चेतन होना
छिपना नहीं है
भागना नहीं। है
निरंतर लड़ना है
मरने तक
मार दिए जाने तक

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 58