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चेतन आदमी


चेतन आदमी
विद्रूपताओं से लड़ता हैं
रिवाज बन घर घुस आई
धर्म बन सर चढ़ आयी विद्रूपताओं को
जड़ से पकड़ झिंझोड़ता है
तर्क से जगाता हैं
मग्न, खोए, सोये, अलसाये, सुसुप्त किरदार
इन्द्र के समन्दरों में ले जाता है
डुबोता है निकालता है
खार से खार धोता हे
खरा कर देता है

अचेतन समाज कुलबुलाता है
बिलबिलाता हे
शास्त्रों, ग्रंथों, श्लोकों, संदर्भों की आड॒ ले
प्रतिकार करता है
नहीं ही ढूंढ पाता काट जब
श्राप देने की अघोरी मुद्रा में
आसमान की ओर उंगली उठा बड़बड़ाता है
कि 'ऊपर वाले को चुनौती देने का वही लेता है हिसाब
वही लेगा हिसाब'

तमाम श्रापों-अभिशापो, बहुआओं के इतर
अवश्यम्भावी हैं हादसे

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 56