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देखो, हम भी वही दो रोटी के संघर्ष वाले ही लोग हैं

कि तुम करो बेशक अवतारों का इंतजार
हम कर के बताएंगे
कि हर युग में बोलने की जुर्रत तो
करनी ही होगी।

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 55