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जाने वो कैसे लोग थे
जाने वो कैसे लोग थे
जो कह पाये मक्का में
कि जिधर तेरा अल्लाह नहीं
उधर मेरे पाँव कर दे
बोलना जबकि कुफ्र था उनदिनों
जाने वो कैसे लोग थे
जो बोल पाये उन समयों में
कि
कांकर पाथर जोड़ के मस्जिद दियो बनाये
ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाये
फरमान ही जिस दौर में संविधान होता था
जाने वो कैसे लोग थे
जो बोल पाये
कि पोथी पढ़-पढ़ जग भयो
पंडित भयो ना कोय
ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय
प्रेम का दूसरा अध्याय जबकि सूली पर समाप्त हो जाता था उन दिनों
कैसे लोग थे |
जो कह पाये एक पूंजीपति को
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 53