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कहाँ थे कवि तुम


जिन समयों में
माहौल गर्म था
तुम पहाड़ पर गए हुए थे
जिन समयों में
धर्म का अर्थ हिन्दू
और मजहब का मतलब मुसलमान कहा जाने लगा
तुम्हारे शब्दकोष कोई मांग कर ले गया था
जिन समयों में
कविता को पहाड़, नदी, जंगल,
जमीन में भर उत्साह चीखना था, लड़ना था
तुम किसी किताब को पवित्र कह
आंखों चूम रहे थे
जिन समयों में
मुल्क की चेतना में जहर भरा जा रहा था
तुम्हारी रोमांस पर लिखी नयी किताब
अमेजन पर बिक रही थी
जिन समयो में कालेज जाती लडकी के
ब्लाउज में कोई हाथ डाल रहा था
तुम राष्ट्रवाद का स्थापना गान लिखते रहे
जिन समयों में
चीख कविता में जगह मांग रही थी
तुम कविता नहीं लिख सके

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 52