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परीक्षाओं के ऐसे दौर में सवाल करने की मनाही होगी
राह चलते मिल जाये फकीर
और गणित लगा कर बता दे कि बच्चा पैसा नहीं टिकता
तो हैरान ना होना
फल की चिंता ना करने वालो के पास कभी नहीं टिका पैसा
फकीर जानता हे/ये उसका गणित है
हमारी अंगुली में चमकने लगे कोई नग अगले पल
या गले में ताबीज
तो समझना फकीर के गणित के आगे
अगणित हुआ जाता है हमारा गणित
हमारे ज्ञान के महल भुरभुरा कर गिर रहे होते हैं
और परीक्षा केन्द्रों पर खड़ा ईश्वर
हंस रहा होता है हमारी खाली उत्तर पुस्तिका देख कर
गणित जो दो और दो चार जानता है
उसके आगे दो और दो के अपरिमित फलित का गणित
कह रहा होता है
कि गणित सबके अपने अपने होते है साधक
जन्म और मृत्यु के बीच होने वाली परीक्षाओं में
अब बहुत हुए प्रयोग
गणित को अगणित होने से आखिर तो बचाना ही होगा।

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 51