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घंटा घर चौक

मेरे शहर में एक घंटा घर चौक है
लेबर बिकने आती है जहाँ अल्लसुबह
लेबर अर्थशास्त्र का एक शब्द है
अर्थशास्त्र इस लेबर को नहीं आती लेकिन
इन्हें इतना सा मालूम है
कि किश्तों में आदमी के भी बिकने की
व्यवस्था होती है हर अर्थव्यवस्था में
ये किश्तें कब पूरी होंगी
ये देह कब उनकी होगी
नहीं जानती लेबर
लेबर के हाथ में एक टिफिन है
जिसमें रखा खाना तय करता है
कि गरीबी की रेखा कहाँ खिंचेगी
कि कैसे बनाई जाएँगी
देश के उत्थान की योजनाएँ
अगरचे देश के उत्थान का अर्थ
देश के नागरिकों का उत्थान नहीं होता
ये नया अर्थशास्त्र है
इस नए अर्थशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण शब्द है चीप लेबर
जो दूर दराज के मुल्कों की आँख में चमक लाता है
इसी चीप लेबर का झंडा लेकर
हम बुलाने जाते हैं विदेशी व्यापारियों को
और शान बघारते हैं
कि we have enough patential for you
मेरे शहर का ये चौक

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 45