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फ्रेंड रिक्वेस्ट


मैं भेजना चाहता हूं एक फ्रेंड रिक्वेस्ट
मार्क्स को
एक्सेस करना चाहता हूं उसकी वाल
देखना चाहता हूं
बदलते संदभों में
मार्क्स खुद कहाँ खड़ा होगा

भेजना चाहता हूँ एक फ्रेंड रिक्वेस्ट भगत सिंह को
पूछना चाहता हूं
अब क्या स्पेस है उस आजादी का
जो तुमने चाही थी अंग्रेजों से
ये कहते हुए कि
आजादी माने आजादी
सिर्फ ये नहीं कि गोरे चले जाएँ
ओर काले काबिज हो जाएँ
कैसे बेदखल करोगे उन्हें अब
देखना चाहता हूं

भेजना चाहता एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आंबेडकर को
कि अब उनका कैसा रूख है आरक्षण पर
कैसा बदलाव चाहते हैं संविधान में
क्या कभी कोफ्त भी होती है
कि संविधान का मजाक बनाने वालो के ऊपर
क्यों नहीं बना पाये कोई अलग संविधान

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 43