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जिंदगी का कठोर पहिया,
पिता को मूर्ख कहे जाने की उपाधियों के बीच
बड़े होते ये बच्चे
या तो अंत मे अपराधी हो गये
या सहम गए बुरी तरह

वे
जिन्हें महारत थी इनकी महारत को निर्देशित करने में
हंसते देखे गए इन महारथियों के अंत पर
बोलते सुने गए
कि इन अराजक लोगो से हमारा
कभी कोई संबंध नहीं था।

महाभारत है कि
सुनो बच्चों
एक संख्या होती है पिता सी
जिसे संसद कहते हैं
एक भीड होती हे पुत्रों सी
जिसे लोकतंत्र कहते हें
पिता धृतराष्ट्र कहिये
और पुत्र मटके के कौरव
जिनमें से अधिकतर ने मरना ही था बिना पहचान के
पिता चिंतित बहुत दिखाई देता है
पुत्र चिता हुए जाते हैं
आज बस इतना ही
न्याय के विषय में फिर किसी दिन

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 42