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जिन्हें महारत थी


वे
जिन्हें महारत थी बोगियां जलाने में
खुद जल मरे मुफलिसी में एक दिन

जिन्हें सहारत थी
आका के लिए एनकाउंटर करने में
खुद एनकाउंटर हो गए किसी दिन

जिन्हें सहारत थी
पेट्रोल बम बनाने में
उसी पेट्रोल में भस्म हो गए एक दिन

जिन्हें महारत थी
बस्तियां जलाने में
जेल में सडते रहे अंतिम सांस तक

जिन्हें धर्माधता में दिखता था भविष्य
जूती गाँठते देखे गए
किसी महानगर में

ईन सभी को परिवार कत्तई
सम्भाल नहीं गए इनको पतन उपरांत,
इनके बच्चो को कभी नहीं मिला सम्मान
इनके पिताओं के कृत्यों पर
बच्चों को बिन पिता ही ठेलना पड़ा

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 41