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वे जो

लिंग जांच की पँक्ति में खडे कोस रहे हे लडकी को
वे जो जमाने के डर के आगे नपुंसक हुए जाते है
वे जिन्होंने जिंदा कंकाल बना दी हैं अपनी स्त्रियां
वे जिन्हें अस्तिव की परिभाषा से सरोकार नहीं
बेशक कहते हो भारत माता की जय
राष्ट्रवादी नहीं हैं

वे
जो टोपी दाढ़ी पगड़ी में भेद रखते हैं
जिनके अवचेतन में घुसे हैं वर्ण के कीडे
जो नाम से पहले जाति पूछते है
बेशक करते हों संविधान की पूजा
वे राष्ट्रवादी नहीं हैं

वे जो राष्ट्रवादी नहीं हैं
राष्ट्रवाद के लिए सम्मानित होते हैं जब
राष्ट्रवाद कोने में नग्न खडा
चीत्कारना चाहता है
घुटी जुबान में मगर बस इतना ही कह पाता है
मेरे कपड़े मुझे वापिस लौटा दे राष्ट्रवादी

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 38