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वे राष्ट्रवादी नहीं हैं


वे
जो राह चलते गिराते जाते हैं कूड़ा
बहुत बर्बाद करते हैं पानी बिजली भोजन
गाड़ी धोते करते जाते हैं कीचड
पड़ोसी के लिए बने रहते है सरदर्द
बेशक बजाते हो गाडी में बंदे मातरम
राष्ट्रवादी नहीं हैं

वे
जो मेट्रो बस रेल में
झपट कर लपकते हैं सीट
लाचार को देख आंख फेर लेते हैं
भीड़ को धकिया कर आगे निकलते हैं
बिना बारी लाइन तोड़ कर
हित साधते हैं अपने
बेशक खड़े होते हों राष्ट्रगान में
राष्ट्रवादी नहीं हैं

वे जो
दफ्तरों में सुविधा शुल्क
रेल में टी टी से अनुकूलता
अदालतों में रीडर की जेब गर्म
और राशन में गलत पीले कार्ड पर लेते हैं राशन
बेशक झुकते हो राष्ट्रध्वज के सामने
राष्ट्रवादी नहीं हैं

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 37