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हमने जिसे मां कहा


हमने नदी को मां कहा
और गन्दला करते रहे

हमने गाय को मां कहा
और दूह कर छोड़ दी

हमने धरती को मां कहा
रहने लायक नहीं छोड़ी धरती

हमने भारत को मां कहा
बांट दी नफरतों में उसकी संताने

हमने मां की शान में काव्य लिखे
और मां को बनारस छोड़ आये

इन सबके बावजूद हम
संस्कृतियों के स्तुतिगान गाती
श्रेष्ठ संताने बनी रही

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 36