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औरतें अजीब पागल होती हैं

वे पानी से प्रेम करती हे
बहुत कम पानी से नहाती हें
कम पानी पीती हैं
बाल्टी, कनस्तर, मटका, टब सब भर रखती हैं
किसी दिन फिर यूं ही
आंखों के रस्ते रिक्त हो जाती हैं,
नदी भरती हैं
समन्दर उडेलती हैं
औरतें सच मे पागल होती हैं

सोचता है पुरुष कि सच मे पागल हैं औरतें
वे प्रेम ही करेंगी हर घड़ी, हर मौसम, हर हाल
सच यह है लेकिन
कि वे पुरुष से प्रेम नहीं करती
वे मनुष्यता से प्रेम करती हैं

पुरुष से वे तब तक ही प्रेम करती हैं
जब तक बची रहती है उनमें
मनुष्य बने रहने की संभावना

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 35