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औरतें पागल होती हैं


औरतें पागल होती हैं
वे जानवरों से प्रेम करती हें

गाय, भेंस, भेड, बकरी
यहां तक कि उनके बच्चों तक से प्रेम करती हैं
उन बच्चों के जन्म के वक्त
वैसी ही पीड़ा के तनाव में रहती हैं
जैसे खुद जन रही हों बच्चा
बच्चे के जन्म के बाद वे
तनाव के समन्दर से बाहर आती हैं,
जन्म को उत्सव बना देती हैं
औरतें हद पागल होती हैं

नीम से प्रेम करती हें
पीपल से प्रेम करती हैं
जंडी, किकर, बेरी सबसे
पूजने की हद तक प्रेम करती हैं
बतियाती हैं उनसे सुख दुःख
उनके दुख पढ़ती हैं
वे चढ़ सकती हैं पेड
लेकिन पेड पर नहीं चढ़ती
कहीं टूट न जाये डाली, झड़ न जाये पत्ता
कहीं दर्द में न आ जाये पेड,
वे पेड के दर्द को महसूसती हैं
उम्र भर पेड बनी रहती हैं

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 34