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वे आये थे साहब
वे आये थे साहब
दो तीन लोग थे
बोल रहे थे
मंत्री जी का खाना हे तुम्हारे घर
तुम्हें चुना हे हजारों में
खुशकिस्मत हो तुम
मैंने कहा बहुत
कि मंत्री जी लायक नहीं है मेरा घर
बिजली नहीं है
पानी नहीं है
भात भी सिर्फ चावल उबाल कर खाते हैं
कभी एक टेम, कभी कभी दो टेम
मेरा घर उनके काबिल नहीं साहब
मैंने कहा बहुत
मगर मेरे कहने का कब मोल था मेरे देस में
मेरे देस के सफेदपोश के सामने
वे बोले
सब हो जाएगा
तुम बस कोने में बैठ जाना
फोटो के बखत
वे आये साहब
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 32