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लुगाईयां लूटीं
पानी-मंदिर,
तीज-त्योहार
वार-व्यवहार से खदेड़ दिया उनको

आपने कहा
हमने माना हुजूर
हमने नहीं पूछा
ये भी अपने धर्मभाई थे
इनसे नफरत क्‍यों

हम बाईबाप का हुक्म बजायेंगे
जब कहेंगे आप कि सिख को उग्रवादी कहो
हम कहेंगे
जब कहेंगे आप कि ईसाई को लुटेरा कहो
हम कहेंगे
जब कहेंगे आप कि मुसलमान को आतंकवादी कहो
हम कहेंगे

गुस्ताखी माफ करें हुजूर
तो एक बात पूछें?
कि नफरत का नियम शास्वत है
या जरूरत के हिसाब से फैलाई जाती है नफरत
एक बात पूछें माईबाप
कि धर्म की हानि हो तो हम हथियार उठा लें
धर्म का लाभ हो तब हमें कुछ मिलेगा क्या?

26 वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ