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कि आचरण खराब हुआ
तो सोच लेना

पैरोल मांगती लड़कियों के दर्द
उनकी आंखों में जज्ब हैं
कोर से जो बूंद टपकती है
वह समन्दरों से खारी है
खार के सैलाब को मगर
बूंद-बूंद टपकाती हैं लड़कियां
ताकि सैलाब में बह ना जाए
स्त्रियों के कंधों पर खड़ी की गई यह व्यवस्था

पैरोल पर आई लड़कियों को
मांएं भर-भर दुलार देती हैं
मन भर खिलाती हैं
जीने की शक्ति भरती हैं
भाई और पिता जबकि
बौराये रहते हैं
व्यवस्था में समायोजित होते
एक अन्य स्त्री को देखकर

मां को दीखते हैं सिर्फ
नोच लिए गए पँखों के घाव
मां
पैरोल पर आई लड़की को देखती है
कसमसा कर रह जाती है
आसमान को निहारती है

 

18 वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ