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कि असभ्य से सभ्य होने की यात्रा में
शेष बचूं जो
सहेज लिया जाऊं
अवशेष होने पर भी

सुनो
तुम भी
मुझे मत खोजना
स्वयं को खोजना
कि प्रेम की विरक्तियाँ
स्वयं की खोज का
मार्ग प्रशस्त करती हैं।

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 116