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स्थगित मत करना कविता

हवाओं में जहर हो
सर पर कहर हो
डर हर पहर हो
ऐसे में कौन लिखे कविता
केसे लिखे

कवि मित्र ने कहा है
इन्हीं समयों में लिखी जानी होनी है कविता
इन्हीं समयों में बांची जानी होनी है
जब कोई नहीं खड़ा होता रीढ़ के बल
कविता उनकी रीढ़ को बल देती है

कवि मित्र ने कहा है
कविता कुछ नहीं करती
आदमी के भीतर बैठ जाती है बस
कविता का भीतर पैठ जाना
जहर का एक मात्र उपचार है

कविता
ऐसे ही समयों के लिए है कवि
स्थगित मत करना कविता तब
जब कविता की सबसे ज्यादा जरूरत हो।

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 114